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आज परशुराम जयंती पर पढ़ें ये चालीसा, भगवान होंगे प्रसन्न

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में पर्व त्योहारों को विशेष माना जाता है वही आज देशभर में भगवान परशुराम और अक्षय तृतीया का पावन पर्व मनाया जा रहा है यह पर्व बेहद ही खास माना जाता है ऐसा कहा जाता है कि परशुराम जयंती के दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की ​विधि विधान से पूजा आर्चना करनी चाहिए ऐसा करने भगवान की कृपा प्राप्त होती है वही इस दिन श्री परशुराम भगवान की चालीसा का पाठ करने से प्रभु का आशीर्वाद मिलता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री परशुराम चालीसा पाठ। 

श्री परशुराम चालीसा—

॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरण सरोज छवि,निज मन मन्दिर धारि।

सुमरि गजानन शारदा,गहि आशिष त्रिपुरारि॥

बुद्धिहीन जन जानिये,अवगुणों का भण्डार।

बरणों परशुराम सुयश,निज मति के अनुसार॥


॥ चौपाई ॥
जय प्रभु परशुराम सुख सागर।
जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर॥


भृगुकुल मुकुट विकट रणधीरा।
क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा॥


जमदग्नी सुत रेणुका जाया।
तेज प्रताप सकल जग छाया॥


मास बैसाख सित पच्छ उदारा।
तृतीया पुनर्वसु मनुहारा॥


प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा।
तिथि प्रदोष व्यापि सुखधामा॥


तब ऋषि कुटीर रूदन शिशु कीन्हा।
रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा॥


निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े।
मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े॥


तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा।
जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा॥


धरा राम शिशु पावन नामा।
नाम जपत जग लह विश्रामा॥


भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर।
कांधे मुंज जनेऊ मनहर॥


मंजु मेखला कटि मृगछाला।
रूद्र माला बर वक्ष विशाला॥


पीत बसन सुन्दर तनु सोहें।
कंध तुणीर धनुष मन मोहें॥


वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता।
क्रोध रूप तुम जग विख्याता॥


दायें हाथ श्रीपरशु उठावा।
वेद-संहिता बायें सुहावा॥


विद्यावान गुण ज्ञान अपारा।
शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा॥


भुवन चारिदस अरु नवखंडा।
चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा॥


एक बार गणपति के संगा।
जूझे भृगुकुल कमल पतंगा॥


दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा।
एक दंत गणपति भयो नामा॥


कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला।
सहस्त्रबाहु दुर्जन विकराला॥


सुरगऊ लखि जमदग्नी पांहीं।
रखिहहुं निज घर ठानि मन मांहीं॥


मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई।
भयो पराजित जगत हंसाई॥


तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी।
रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी॥


ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना।
तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा॥


लगत शक्ति जमदग्नी निपाता।
मनहुं क्षत्रिकुल बाम विधाता॥


पितु-बध मातु-रूदन सुनि भारा।
भा अति क्रोध मन शोक अपारा॥


कर गहि तीक्षण परशु कराला।
दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला॥


क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा।
पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा॥


इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी।
छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी॥


जुग त्रेता कर चरित सुहाई।
शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई॥


गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना।
तब समूल नाश ताहि ठाना॥


कर जोरि तब राम रघुराई।
बिनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई॥


भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता।
भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता॥


शास्त्र विद्या देह सुयश कमावा।
गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा॥


चारों युग तव महिमा गाई।
सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई॥


दे कश्यप सों संपदा भाई।
तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई॥


अब लौं लीन समाधि नाथा।
सकल लोक नावइ नित माथा॥


चारों वर्ण एक सम जाना।
समदर्शी प्रभु तुम भगवाना॥


ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी।
देव दनुज नर भूप भिखारी॥


जो यह पढ़ै श्री परशु चालीसा।
तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा॥


पृर्णेन्दु निसि बासर स्वामी।
बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी॥

॥ दोहा ॥
परशुराम को चारू चरित,मेटत सकल अज्ञान।

शरण पड़े को देत प्रभु,सदा सुयश सम्मान॥

॥ श्लोक ॥
भृगुदेव कुलं भानुं,सहस्रबाहुर्मर्दनम्।

रेणुका नयना नंदं,परशुंवन्दे विप्रधनम्॥