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आज करें अच्युतस्याष्टकम् का पाठ, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मिलेगी कृपा

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में जगत के आधार श्री हरि विष्णु का पूजन माता लक्ष्मी के साथ करना बेहद ही शुभ माना जाता हैं इससे देवी मां लक्ष्मी और भगवान श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती हैं शुक्रवार का दिन लक्ष्मी पूजा को समर्पित होता हैं मगर इस दिन मां लक्ष्मी के साथ श्री विष्णु की पूजा करना लाभकारी माना जाता हैं इस दिन श्री हरि के पूजन से भक्तों की सभी समस्याओं का निराकरण होता हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं इस दिन व्रत रखने का भी विधान हैं इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर श्री विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए पूजा में भगवान को हल्दी, गुड़ और चने का भोग जरूर लगाएं और मां लक्ष्मी को गुलाबी वस्त्र अर्पित करें। पूजा के अंत में आरती से पहले अच्युताष्टकम् का पाठ करना चाहिए इसका पाठ करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती हैं और भक्तों पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती हैं इससे सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। 
 
श्री अच्युतस्याष्टकम् ।

अच्युतं केशवं रामनारायणं

कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।

श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं

जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥1॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं

माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।

इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं

देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥२॥

विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे

रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये ।

बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने

कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण

श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।

अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज

द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥४॥

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो

दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।

लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो

राघव पातु माम् ॥५॥

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा

केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।

पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो

बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥६॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं

प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।

वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं

लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं

रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।

हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं

किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं

प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।

वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य

वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥९॥

श्री शङ्कराचार्य कृतं!