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39 अजीबोगरीब प्रजातियां की गहरे समुद्र में हुई खोज, जिनसे वैज्ञानिक आज से पहले तक थे अनजान

 

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। विज्ञान की दुनिया में आए दिन नई खोजें हो रही हैं। हमारी धरती पर अभी भी बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो हमारे पास मौजूद हैं, लेकिन उनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। इसी कड़ी में प्रशांत महासागर की गहराई में 30 से अधिक नई और विदेशी प्रजातियों की खोज की जाती है। दरअसल ये समुद्री जीव समुद्र के तल पर पाए जाते हैं। उनका रूप और आकार भी बहुत ही अजीबोगरीब है, जिसका वर्णन ज़ूकेज़ पत्रिका में बहुत विस्तार से किया गया है। समुद्री अनुसंधान के दौरान इस नई प्रजाति की खोज की गई थी। खोज क्लेरियन-क्लिपरटन क्षेत्र के तल पर की गई है। आपको बता दें कि यह क्षेत्र सेंट्रल पैसिफिक में हवाई और मैक्सिको के बीच 45 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दरअसल, इस खोज के दौरान 48 अलग-अलग प्रजातियों का पता चला है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इनमें से 39 प्रजातियों के बारे में विज्ञान भी नहीं जानता था।

पहले, क्लेरियन-क्लिपरटन ज़ोन में जानवरों का अध्ययन केवल तस्वीरों और वीडियो फुटेज के माध्यम से किया जाता था। लेकिन खोज दल रोबोटिक पंजों से लैस एक दूरस्थ रूप से संचालित वाहन की मदद से जानवरों को सतह से निकालने में सक्षम थे, जिसका तब अध्ययन और बारीकी से विश्लेषण किया जा सकता था।
 
प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय डॉ. ग्वाडालूप ब्रिबिस्का-कॉन्ट्रेरास (अध्ययन के प्रमुख लेखक) का कहना है कि यह शोध न केवल यहां पाई जाने वाली नई प्रजातियों के कारण महत्वपूर्ण है, बल्कि इसलिए भी कि इन नमूनों का पहले केवल तस्वीरों के माध्यम से अध्ययन किया गया है।
 
उन्होंने समझाया कि उनके पास नमूने और डीएनए डेटा के बिना, जानवरों की ठीक से पहचान नहीं की जा सकती है। साथ ही, उनकी विभिन्न प्रजातियों को समझा नहीं जाता है। इनमें से अधिकतर नमूने 15,748 फीट से अधिक गहराई से लिए गए थे।


 
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस खोज में स्टारफिश की एक नई प्रजाति भी खोजी गई है। थक हार कर वह समुद्र की तलहटी में गिर पड़ी। समुद्री खीरे की नई प्रजातियां, कई कीड़े, जेलिफ़िश, मूंगा और कई अकशेरूकीय भी खोजे गए। खास बात यह है कि हमें पहले इस प्रजाति के बारे में जानकारी नहीं थी।
 
पाए गए जीवों में से एक साइक्रोपोट्स डिस्क्रीटा था। यह एक पीले रंग का खीरा था, जिसे चिपचिपी गिलहरी भी कहा जाता है। इसकी जानकारी पहली बार 1920 में दी गई थी।