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जानिए वो Secret Kashi Vishwanath Temple के जिन्हे ना जाने लोग, इसमें ही है World की भलाई

 

ट्रेवल न्यूज डेस्क।। पवित्र शहर वाराणसी गंगा नदी के तट पर बसा, एक अत्यंत पूजनीय स्थान हिंदू समुदाय के लिए है। वाराणसी ऊर्फ काशी की हिंदू पौराणिक कथाओं में पवित्र माने जाने वाला तीर्थयात्रा भक्तों के लिए अत्यधिक पूजनीय है। पवित्र वाराणसी के सबसे प्रमुख मंदिरों में से काशी विश्वनाथ मंदिर एक है, जो हर साल बहुत सारे पवित्र भक्तों को पूरे भारत से आकर्षित करता है। कुछ दिलचस्प बातों के बारे में चलिए आपको इस मंदिर से जुड़ी बताते हैं, जिनके बारे में आपने पहले ही कभी सुना होगा।

कई बार तोडा और बनाया गया मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर को मुगलों के काल में कई बार लूटा गया था। हालांकि मूल मंदिर के निर्माण की मुगल सम्राट अकबर ने अनुमति दी थी, लेकिन मंदिर को उनके परपोते औरंगजेब ने बाद में नष्ट कर दिया और वहां एक मस्जिद का निर्माण किया। वर्तमान में बना मंदिर का निर्माण इंदौर की रानी महान रानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। जिसका नाम ज्ञानवापी मस्जिद है। 

रानी के सपने में आए थे भगवान शिव

 रानी ने इसे मंदिर का पुनर्निर्माण करके और इसके लिए धन प्रदान करके काशी की महिमा को बनाए रखने के लिए इसका निर्माण किया गया। जैसा की हमने बताया रानी अहल्या बाई होल्कर द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। यहां तक कि इंदौर के महाराजा रणजीत सिंह ने भी 15.5 मीटर खंभों के चार सोने के निर्माण के लिए लगभग टन सोने का योगदान दिया था। ऐसा माना जाता है कि रानी के सपने में भगवान शिव प्रकट हुए थे। 

आक्रमण से बचने के लिए छुपा दिया गया था शिवलिंग

मंदिर और मस्जिद के अवशेषों के बीच अभी भी कुआं पाया जा सकता है। इस कुएं को ज्ञानवापी यानी ज्ञान के कुएं के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब औरंगजेब द्वारा विनाश की खबर पंडित के कानों में पड़ी तो उन्होंने शिवलिंग को छिपाने और आक्रमण से बचाने के लिए कुएं में छलांग लगा दी। 

कशी वो जगह जहां पड़ी थी सूर्य की पहली किरण

ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के निर्माण के दौरान सूर्य की पहली किरण काशी यानी वाराणसी पर पड़ी थी। उनकी मर्जी के बिना ग्रह भी अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकते। इसलिए काशी को शिव की नगरी के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव को स्वयं इस शहर और यहां रहने वाले लोगों के संरक्षक के रूप में जाना जाता है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि भगवान स्वयं कुछ समय के लिए मंदिर में रहे थे। 

मंदिर के बाहर शनि देव के मंदिर बनने का कारण

शनि देव को भगवान शिव की तलाश में काशी में प्रवेश करना था। लेकिन उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, इसलिए उन्हें शिव की तलाश में मंदिर के बाहर साढ़े सात साल तक रहना पड़ा।  यही कारण है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर आपको शनिदेव का मंदिर देखने को मिल जाएगा। 

मंदिर के शीर्ष पर छत्र के दर्शन से होती हैं इच्छाएं पूरी

ऐसा माना जाता है कि छत्र के दर्शन करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होती है। छत्र को मंदिर के समान ही पवित्र माना जाता है। मंदिर के शीर्ष पर आप एक सुनेहरा छत्र देख सकते हैं, जिसकी आकर्षक वास्तुकला देखने लायक होती है।  जब पूरी दुनिया अपने अंत के करीब होगी, बाबा विश्वनाथ यानी भगवान शिव अपने त्रिशूल की नोक पर काशी की रक्षा करेंगे। साथ ही, काशी की रक्षा करने के इस कृत्य का उल्लेख हिंदू पौराणिक कथाओं में उर्ध्वमनय के रूप में किया गया है।