×

10 हजार कमरों वाला वो रहस्यमयी होटल, जहां कभी कोई नहीं ठहर सका

 

लाइफस्टाइल डेस्क, जयपुर।। जर्मनी के बाल्टिक सागर के रुगेन द्वीप पर हिटलर के आदेश पर बने इस होटल को Colossus of Prora के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि नाजी वास्तुविद Clemens Klotz ने अडोल्फ हिटलर के आदेश पर साल 1930 में इस होटल का डिजाइन तैयार किया था. तब दूसरे विश्व युद्द की शुरुआत तो नहीं हुई थी लेकिन जर्मनी में नाजी खौफ बैठने लगा था. इसी दौरान हिटलर ने रुगेन आइलैंड पर एक हॉलीडे कैंप बनवाने की सोची.

लगभग 5 किलोमीटर के दायरे में फैले इस आइलैंड को तैयार करवाने का जिम्मा नाजी संस्था Kraft durch Freude ने लिया, जिसका मतलब है खुशी के जरिए मजबूती पाना. इस होटल को तैयार करवाने के पीछे हिटलर का सीधा मकसद था कि जर्मन लोग और खासकर सैनिक काम के बाद मौज-मस्ती का वक्त बिता सकें. होटल को प्रोरा नाम दिया गया, जिसका अर्थ है बंजर जमीन. ये नाम इसलिए मिला क्योंकि होटल को समुद्र के बीच रेतीली जगह पर बनाया गया था. बड़े पैमाने पर काम शुरू हुआ.

काम में लगभग 9 हजार मजदूर दिन-रात जुटे और साल 1936 से 1939 के बीच 3 साल तक लगातार काम चलता रहा. इस प्रोजेक्ट में 237.5 मिलियन जर्मन करंसी लगी. आज के समय में इसकी लागत है लगभग €899 मिलियन. इसके 8 हाउसिंग ब्लॉक, थिएटर और सिनेमा हॉल बनकर तैयार हो गए. स्विमिंग पूल और फेस्टिवल हॉल का काम शुरू ही होना वाला था कि तभी दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया और 1939 में काम रुक गया. सभी मजदूरों को सेना में भेज दिया गया.



इसके बाद ये काम फिर कभी शुरू नहीं हो सका. होटल की अधबनी इमारतों का इस्तेमाल सैनिकों ने बैरक की तरह किया. जैसे पहले सोवियत आर्मी के सैनिक यहां छिपे, जिनके बाद नेशनल पीपल्स आर्मी और उनके बाद युनिफाइड आर्म्ड फोर्स ऑफ जर्मनी. बमबारी के दौरान यहां सैनिकों के अलावा आम लोग भी छिपने के लिए आया करते थे. इसी बीच ये चमचमाती इमारतें बुरी तरह से टूट-फूटकर खंडहर में बदलने लगीं. बाद के समय में कई बार हिटलर के सपनों के इस होटल को बेचने का काम हुआ लेकिन ऐसा हो नहीं सका. हर बार डील किसी न किसी वजह से टूट जाती थी. ज्यादातर लोगों का मानना था कि लड़ाई के दौरान यहां भी बहुत सी जानें गई होंगी इसलिए ये जगह भुतहा भी हो सकती है. आखिरकार साल 2004 के बाद इस होटल के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग टुकड़ों में बेचे जा सकने में सफलता मिलने लगी.