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आज कल क्यों बढ रही है पढी-लिखी और सुंदर के साथ-साथ घरेलू बहू की डिमांड?

 

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। आजकल के बदलते लाइफस्टाइल में हर कोई शादी के लिए पढ़ी-लिखी और घरेली बहू की डिमांड करता है। यह तो नहीं कह सकते कि ऐसा हर जगह हो रहा है, लेकिन अकसर यह देखा गया है। ऐसे में दूल्हे के परिवार अब ऐसी दुल्हनों की तलाश कर रहे हैं जो इतनी शिक्षित हों कि वे अपना नाम लिख सकें, साथ ही घरेलु भी होनी चाहिए जो बाहर जाकर कमाए नहीं बल्कि घर का काम करे। 

अशिक्षित महिलाओं से शादी नहीं करना चाहते पुरुष
रवींद्रनाथ टैगोर  द्वारा लिखित एक बंगाली उपन्यास 'चोखेर बाली' में ऐसा ही कुछ देखने को मिला था। आज के समय में देखें तो लोगों दिमाग के साथ सुंदर बहू की तलाश कर रहे हैं, लेकिन  शिक्षित पुरुष ग्रामीण और अशिक्षित महिलाओं से शादी करने से इनकार कर देते हैं। इस कहानी में उनके द्वारा बताया गया था कि एक पढ़ा-लिखा आदमी सबसे  खूबसूरत लेकिन अशिक्षित महिला से शादी करता है। लेकिन जैसे ही वह एक शिक्षित और सुंदर विधवा को देखता है तो उस पर मोहित हो जाता है और वह अपनी पहली पत्नी को  छोड़ देता है। 

शिक्षित महिलाओं से भी परहेज
वह ऐसी पत्नियों  की तलाश करते हैं जो जो अच्छी तरह से जानती हों कि रसोई में उनकी माताओं के साथ कैसे काम करना है। साथ ही मुद्दा यह है कि इस तरह के शिक्षित पुरुष, ऐसी महिला से भी शादी करने से परहेज करते हैं जो उन्हें पद या वेतन के आधार पर चुनौती देती है। बॉलीवुड फिल्मों में अकसर दिखाया जाता है कि पति एक कॉकटेल पार्टी में साड़ी पहनने वाली पत्नी से नफरत करते हैं। 

माता-पिता को दहेज की ज्यादा चिंता 
अगर कुछ लड़कियां स्कूलों में दाखिला भी लेती हैं, तो वे बाल विवाह या कम उम्र में शादी के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। लेकिन अब लोग ग्रेजुएट या कम से कम 12वीं पास दुल्हनों की मांग कर रहे हैं। एक कड़वा सच यह भी है कि भारत में कई माता-पिता अपनी बेटियों को शिक्षित करने की बजाए उनके दहेज के लिए पैसा जोडना चाहते हैं। क्या यह एक बेहतर भविष्य की ओर संकेत है कि यदि विवाह के लिए शिक्षा की आवश्यकता होगी। 

शिक्षा को माना जा रहा संपत्ति 
हालांकि, इंजीनियरिंग, पीएचडी आदि जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए कम महिलाएं जाती हैं। 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 42 प्रतिशत महिलाओं ने पीएचडी में दाखिला लिया था। आंकड़ों के अनुसार, उच्च शिक्षा में लड़कियों का नामांकन 2007 से 2014 तक 39 प्रतिशत से बढ़कर 46 प्रतिशत हो गया है। यहा ध्यान देने वाली बात यह है कि भले ही माता-पिता कॉलेजों / स्कूलों में लड़कियों  का नामांकन करते हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति उससे कम है।

ससुराल वाले नहीं करने देते काम 
एक बेटी के परिवार को यह समझने की जरूरत है कि शिक्षा केवल सजावट का एक टुकड़ा या महिलाओं के लिए विवाह योग्यता का प्रतीक नहीं है। लेकिन खुद को और दूसरों को अपने दायरे में सशक्त बनाने का एक हथियार है। भले ही कुछ माता-पिता अपनी बेटियों को पढ़ने और डिग्री हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन ससुराल वाले उन्हें काम नहीं करने देते। इस समस्या का एकमात्र समाधान वर और वधू के परिवारों के बीच महिला शिक्षा और सशक्तिकरण के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।