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सर्वपितृ अमावस्या: श्राद्ध की आसान विधि, ऐसा करने से भी तृप्त होंगे पितर, जानिए पुरी बातें यहां

 
सर्वपितृ अमावस्या: श्राद्ध की आसान विधि, ऐसा करने से भी तृप्त होंगे पितर, जानिए पुरी बातें यहां

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। आज अमावस्या में श्राद्ध का ​आखिरी दिन है आज के दिन पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान करने का विशेष महत्व है। हिन्दु धर्म में ऐसी मान्यता है कि इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। 15 दिनों के ये श्राद्ध अश्विन महीने की अमावस्या के दिन खत्म हो ते हैं। इस बार यह तिथि 6 अक्तूबर को पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अकाल मृत्यु या जिनकी तिथि याद ना हो उनका श्राद्ध करना चाहिए। इस दिन को सर्वपितृ अमावस्या, सर्वार्थसिद्धि और चतुर्ग्रही योग कहा जाता है। ऐसे में आज के दिन ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, 11 सालों बाद गजछाया योग बनने से सर्वपितृ अमावस्या का महत्व और भी बढ़ गया है। इसलिए आज के दिन इस शुभ संयोग में तीर्थ स्नान, पीपल पूजा, दीपदान और श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।

तीर्थ स्नान और दीपदान का विशेष महत्व
इस खास दिन पर तीर्थ स्नान करने करने की भी परंपरा है। इसके साथ ही सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध के बाद यानि शाम के समय दीपदान करने का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, जिन लोगों की अकाल मृत्यु या जिनकी तिथि याद ना हो उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या पर करना चाहिए।  मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पितृ शांति के लिए चढ़ाएं पीपल में जल
मान्यता है कि इससे पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही पितृदोषों से मुक्ति मिलती है। सर्वपितृ अमावस्या पर पीपल वृक्ष की सेवा करने व जल चढ़ाने का भी विशेष महत्व है। इसके लिए एक लोटे में पानी, कच्चा दूध, काले तिल, जौ मिलाएं। फिर इसे पीपल की जड़ में अर्पित करके पूजा करें।

सर्वपितृ अमावस्या: श्राद्ध की आसान विधि, ऐसा करने से भी तृप्त होंगे पितर, जानिए पुरी बातें यहां

आसान विधि से करें श्राद्ध
. आप सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं व साफ कपड़े पहनें।
. इसके बाद पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और दान का संकल्प लें।
. जब तक श्राद्ध ना हो जाए कुछ खाएं-पीएं ना।
. दिन के आठवें मुहूर्त यानि कुतुप काल में ही श्राद्ध करें। यह सुबह 11.36 से 12.24 तक के बीच का समय माना जाता है।
. इस समय दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बाएं पैर को मोड़कर, घुटने को जमीन पर टीकाकर बैठें।
. उसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में पानी डालकर उसमें जौ, तिल, चावल गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल डाल दें।
. अब हाथ में कुशा घास रख कर बर्तन वाले जल को हाथों में भरें। फिर सीधे यानि राइट हैंड के अंगूठे से पानी को उसी बर्तन में गिरा दें।
. लगातार 11 बार इस प्रक्रिया को दोहराते हुए पूर्वजों का ध्यान करें।
. अब अग्नि में पितरों के लिए खीर अर्पित करें।
. उसके बाद पंचबलि ग्रास यानि देवता, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी के लिए भोजन निकाल दें।
. फिर ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
. श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा व अन्य चीजों का दान देकर ब्राह्मणों का आशीर्वाद लें।

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