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जब हनुमान ने किया सत्यभामा, सुदर्शन और गरूड़ का घमंड चूर-चूर
 

 
when lord Krishna shattered satyabhama sudarshan chakra and garuda together pauranik katha hanuman raam

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं तो आज हम आपको उन्हीं में से एक कथा के बारे में बता रहे हैं जिसमें प्रभु राम के परम भक्त हनुमान ने सत्यभामा, सुदर्शन और गरूड़ के घमंड को तार तार कर दिया, तो आइए जानते हैं। 

भगवान श्रीकृष्ण द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे। तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा थ। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था सीता आपकी पत्नी थी। क्या वे मुझसे भी अधिक सुंदर थी। द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है तभी गरूड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी अधिक तेज गति से कोई उड़ सकता हैं इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वे भी कह उठे कि भगवान मैंने बड़े बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई हैं। 

भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे थे वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है ऐसा सोचकर उन्होंने गरूड़ से कहा कि हे गरूड़ तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि प्रभु श्रीराम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए। इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में। तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करें। 
  
भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर सारी बात बताई। हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा आप चलिए, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरूड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर ड़े पर यह क्या। महल में पहुंचकर गरूड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया। 

तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए। क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं। हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। भगवान मन ही मन मुस्कुराने लगे। हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया हे प्रभु आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान हैं। 

 अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़ जी तीनों का गर्व चूर चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। अद्भुत लीला है प्रभु की। अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त द्वारा ही दूर किया उन्होंने। 

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