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भारत का एक ऐसा किला, जिस पर तोप के गोले भी हो जाते थे बेअसर, 100 सालों में भी नहीं जीत पाए थे अंग्रेज

 
भारत का एक ऐसा किला, जिस पर तोप के गोले भी हो जाते थे बेअसर, 100 सालों में भी नहीं जीत पाए थे अंग्रेज

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। हमारे देश में कई ऐसे किले हैं जिनके बारे में कई कहानियां भी प्रचलित हैं जिनमें से ज्यादातर सच्ची घटनाएं हैं। ऐसा ही एक लाइका राजस्थान के भरतपुर में भी है, जिसे लोहागढ़ या लोहागढ़ किला कहते हैं। इस किले को देश का एकमात्र अभेद्य किला कहा जाता है, क्योंकि इस पर अब तक किसी ने विजय प्राप्त नहीं की है। इतना ही नहीं अंग्रेज इस किले पर आक्रमण करने में कभी सफल नहीं हुए। कहा जाता है कि इस किले पर तोप के गोले भी बेअसर रहे थे।

भारत का एक ऐसा किला, जिस पर तोप के गोले भी हो जाते थे बेअसर, 100 सालों में भी नहीं जीत पाए थे अंग्रेज

बता दें कि इस किले का निर्माण 285 साल पहले यानी 19 फरवरी 1733 को जाट शासक महाराजा सूरज मल ने करवाया था। उन दिनों तोप और बारूद का प्रचलन अधिक था। हमलावरों ने तोपों और बारूद से बड़ी से बड़ी इमारतों पर हमला किया और नष्ट कर दिया और फिर उन पर कब्जा कर लिया। इस वजह से इस किले को बनाने में एक खास प्रयोग किया गया, जिससे बारूद के गोले भी किले की दीवार से टकराकर बेअसर हो गए।

इस किले के निर्माण से पहले पत्थरों की चौड़ी और मजबूत ऊंची दीवार बनाई गई थी। इन पर तोप के गोलों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, इसलिए इन दीवारों के चारों ओर सैकड़ों फुट चौड़ी मिट्टी की एक दीवार बना दी गई और नीचे एक गहरी और चौड़ी खाई बनाकर उसमें पानी भर दिया गया। ऐसे में अगर दुश्मन पानी को पार भी कर जाए तो उसके लिए सपाट दीवार पर चढ़ना काफी मुश्किल था।

भारत का एक ऐसा किला, जिस पर तोप के गोले भी हो जाते थे बेअसर, 100 सालों में भी नहीं जीत पाए थे अंग्रेज

इसलिए हर आक्रमणकारी इस किले पर आक्रमण कर अपने को ठगा हुआ महसूस करता था। क्योंकि तोप से निकले गोले मोर्टार से बनी दीवार से टकराते और उनकी आग शांत हो जाती। इससे किला क्षतिग्रस्त नहीं हुआ। और दुश्मन को बेरंग लौटना पड़ा।

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कहा जाता है कि अंग्रेजों ने इस किले पर कब्जा करने के लिए 13 बार आक्रमण किया था। ब्रिटिश सेना ने यहां सैकड़ों तोपों की बारिश की, लेकिन गोलों का किले पर कोई असर नहीं हुआ। उनकी एक भी तोप किले की दीवार में नहीं घुस सकती थी। कहा जाता है कि बार-बार हार के बाद ब्रिटिश सेना का मनोबल टूट गया, जिसके बाद वह पीछे हट गई। अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड ने कहा कि इस किले की सबसे बड़ी विशेषता इसकी दीवारें थीं, जो मिट्टी की बनी हुई थीं, लेकिन फिर भी इस किले को जीतना लोहे को चबाना से कम नहीं था।

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