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देश का एक ऐसा अनोखा गावं जहां किसी को अपने पिता का नाम पता नहीं होता, वजह जान पैरों तले जमीन खिसक जाएगी

 
देश का एक ऐसा अनोखा गावं जहां किसी को अपने पिता का नाम पता नहीं होता, वजह जान पैरों तले जमीन खिसक जाएगी

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। परिवार के सभी सदस्य बच्चों के दो-तीन साल का होने के बाद ही उसे उसके माता-पिता के बारे में बताने लगते हैं. अपने पिता और माता का नाम जिससे उसे याद हो जाए और किसी के पूछने पर बता सके. लेकिन एक ऐसे गांव के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं अपने पिता के बारे में जहां के बच्चे जानते तक नहीं हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश के पन्ना जिले एक गांव की हम बात कर रहे हैं जहां बच्चे अपने पिता को नहीं जानते. इसीलिए 'मिसिंग फादर्स' के नाम से भी लोग इस गांव को जानने लगे हैं. इस गांव में बच्चों के पिता को ना पहचाने के पीछे की वजह कुछ और नहीं रोजगार की कमी हैं इस गांव में करीब 600 लोग रहते हैं .

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। परिवार के सभी सदस्य बच्चों के दो-तीन साल का होने के बाद ही उसे उसके माता-पिता के बारे में बताने लगते हैं. अपने पिता और माता का नाम जिससे उसे याद हो जाए और किसी के पूछने पर बता सके. लेकिन एक ऐसे गांव के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं अपने पिता के बारे में जहां के बच्चे जानते तक नहीं हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश के पन्ना जिले एक गांव की हम बात कर रहे हैं जहां बच्चे अपने पिता को नहीं जानते. इसीलिए 'मिसिंग फादर्स' के नाम से भी लोग इस गांव को जानने लगे हैं. इस गांव में बच्चों के पिता को ना पहचाने के पीछे की वजह कुछ और नहीं रोजगार की कमी हैं इस गांव में करीब 600 लोग रहते हैं .  दरअसल, अब मिसिंग फादर्स के नाम से पन्ना जिले के मनकी गांव को लोग जानने लगे हैं. क्यों कि अधिकांश पुरुष काम की तलाश में इस गांव के बाहर ही रहते हैं. सूखे से प्रभावित ये गांव है इसीलिए 70 फीसदी पुरुष गांव से बाहर इस गांव के मेहनत-मजदूरी कर गुजारा करने को मजबूर हैं.  गांव में काफी समय से बारिश ना होने की वजह से गांव में भारी सूखा पड़ गया है. इसीलिए इस गांव में खेती करना भी संभव नहीं रहा है. इस गांव के लोग काम की तलाश में दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश चले जाते हैं. अब तो महिलाएं भी गांव छोड़कर अपने पतियों के साथ काम की तलाश में शहरों की ओर प्रस्थान कर रही हैं.    जब उनके प्रसव का समय आता है तभी वह गांव लौटती हैं. वहीं बच्चे जैसे ही थोड़े बड़े होते हैं तो उन्हें गांव में परिवार के अन्य सदस्यों के पास छोड़कर दोबारा काम पर लौट जाती हैं. इस गांव की अधिकांश महिलाएं अपने पतियों के साथ निर्माण स्थलों पर काम करती हैं. घर का खर्चा चल सके इसके लिए वह गर्भवती अवस्था में भी काम करना नहीं छोड़ती यही नहीं वो 7वें और 8वें महीने में भी काम करती हैं.   गांव में कोई दाई भी नहीं है और उन्हें किसी अस्पताल में भी नहीं ले जाया जा सकता. जिसकी वजह अस्पतालों का गांव से दूर होना और गांव में पुरुषों का ना होना है. बता दें कि इस गांव की महिलाओं को सुरक्षित प्रसव की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. जिसका खामियाजा उन्हें और उनके होने वाले बच्चों को भुगतना पड़ता है. बता दें कि 2011 में मध्य प्रदेश में विस्थापन का आंकड़ा 1 करोड़ 85 लाख था. जिसमें 50 लाख सिर्फ ग्रामीण इलाकों का था. इसलिए घर की महिलाओं को ही डिलीवरी करनी पड़ती है. 

दरअसल, अब मिसिंग फादर्स के नाम से पन्ना जिले के मनकी गांव को लोग जानने लगे हैं. क्यों कि अधिकांश पुरुष काम की तलाश में इस गांव के बाहर ही रहते हैं. सूखे से प्रभावित ये गांव है इसीलिए 70 फीसदी पुरुष गांव से बाहर इस गांव के मेहनत-मजदूरी कर गुजारा करने को मजबूर हैं.

गांव में काफी समय से बारिश ना होने की वजह से गांव में भारी सूखा पड़ गया है. इसीलिए इस गांव में खेती करना भी संभव नहीं रहा है. इस गांव के लोग काम की तलाश में दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश चले जाते हैं. अब तो महिलाएं भी गांव छोड़कर अपने पतियों के साथ काम की तलाश में शहरों की ओर प्रस्थान कर रही हैं.

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। परिवार के सभी सदस्य बच्चों के दो-तीन साल का होने के बाद ही उसे उसके माता-पिता के बारे में बताने लगते हैं. अपने पिता और माता का नाम जिससे उसे याद हो जाए और किसी के पूछने पर बता सके. लेकिन एक ऐसे गांव के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं अपने पिता के बारे में जहां के बच्चे जानते तक नहीं हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश के पन्ना जिले एक गांव की हम बात कर रहे हैं जहां बच्चे अपने पिता को नहीं जानते. इसीलिए 'मिसिंग फादर्स' के नाम से भी लोग इस गांव को जानने लगे हैं. इस गांव में बच्चों के पिता को ना पहचाने के पीछे की वजह कुछ और नहीं रोजगार की कमी हैं इस गांव में करीब 600 लोग रहते हैं .  दरअसल, अब मिसिंग फादर्स के नाम से पन्ना जिले के मनकी गांव को लोग जानने लगे हैं. क्यों कि अधिकांश पुरुष काम की तलाश में इस गांव के बाहर ही रहते हैं. सूखे से प्रभावित ये गांव है इसीलिए 70 फीसदी पुरुष गांव से बाहर इस गांव के मेहनत-मजदूरी कर गुजारा करने को मजबूर हैं.  गांव में काफी समय से बारिश ना होने की वजह से गांव में भारी सूखा पड़ गया है. इसीलिए इस गांव में खेती करना भी संभव नहीं रहा है. इस गांव के लोग काम की तलाश में दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश चले जाते हैं. अब तो महिलाएं भी गांव छोड़कर अपने पतियों के साथ काम की तलाश में शहरों की ओर प्रस्थान कर रही हैं.    जब उनके प्रसव का समय आता है तभी वह गांव लौटती हैं. वहीं बच्चे जैसे ही थोड़े बड़े होते हैं तो उन्हें गांव में परिवार के अन्य सदस्यों के पास छोड़कर दोबारा काम पर लौट जाती हैं. इस गांव की अधिकांश महिलाएं अपने पतियों के साथ निर्माण स्थलों पर काम करती हैं. घर का खर्चा चल सके इसके लिए वह गर्भवती अवस्था में भी काम करना नहीं छोड़ती यही नहीं वो 7वें और 8वें महीने में भी काम करती हैं.   गांव में कोई दाई भी नहीं है और उन्हें किसी अस्पताल में भी नहीं ले जाया जा सकता. जिसकी वजह अस्पतालों का गांव से दूर होना और गांव में पुरुषों का ना होना है. बता दें कि इस गांव की महिलाओं को सुरक्षित प्रसव की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. जिसका खामियाजा उन्हें और उनके होने वाले बच्चों को भुगतना पड़ता है. बता दें कि 2011 में मध्य प्रदेश में विस्थापन का आंकड़ा 1 करोड़ 85 लाख था. जिसमें 50 लाख सिर्फ ग्रामीण इलाकों का था. इसलिए घर की महिलाओं को ही डिलीवरी करनी पड़ती है. 

जब उनके प्रसव का समय आता है तभी वह गांव लौटती हैं. वहीं बच्चे जैसे ही थोड़े बड़े होते हैं तो उन्हें गांव में परिवार के अन्य सदस्यों के पास छोड़कर दोबारा काम पर लौट जाती हैं. इस गांव की अधिकांश महिलाएं अपने पतियों के साथ निर्माण स्थलों पर काम करती हैं. घर का खर्चा चल सके इसके लिए वह गर्भवती अवस्था में भी काम करना नहीं छोड़ती यही नहीं वो 7वें और 8वें महीने में भी काम करती हैं. 

गांव में कोई दाई भी नहीं है और उन्हें किसी अस्पताल में भी नहीं ले जाया जा सकता. जिसकी वजह अस्पतालों का गांव से दूर होना और गांव में पुरुषों का ना होना है. बता दें कि इस गांव की महिलाओं को सुरक्षित प्रसव की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. जिसका खामियाजा उन्हें और उनके होने वाले बच्चों को भुगतना पड़ता है. बता दें कि 2011 में मध्य प्रदेश में विस्थापन का आंकड़ा 1 करोड़ 85 लाख था. जिसमें 50 लाख सिर्फ ग्रामीण इलाकों का था. इसलिए घर की महिलाओं को ही डिलीवरी करनी पड़ती है. 

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