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हजारों साल से बना है अनोखा रहस्य, क्या वास्तव में हुआ था ट्रोजन का युद्ध? जिसमें...

 
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प्राचीन यूनानी मानते रहे हैं कि ट्रोजन का युद्ध 1194 से 1184 ईसा पूर्व में हुआ था. इस काल को कई आधुनिक इतिहासकार भी स्वीकार करते रहे हैं. इतिहासकार ये भी मानते हैं कि होमर ईसा पूर्व आठवीं सदी में रहे होंगे. दो बातें हैं जिन्हें सभी प्राचीन यूनानी स्वीकार करते रहे हैं- पहली होमर ही इन दोनों महाकाव्यों के लेखक हैं और दूसरी ट्रोजन का युद्ध वास्तव में हुआ था. लेकिन हाल के दिनों की पुरातात्विक, ऐतिहासिक और भाषाई जांचों में सामने आए तथ्यों की रोशनी में इन धारणाओं का फिर से विश्लेषण करने की ज़रूरत महसूस हुई है.

क्या है इतिहास
इलियड और ओडिसी में कही गई कहानियां अतुलनीय हैं और इसी वजह से ये कहानियां आज भी सुनाई जाती हैं. यूनानी मानते हैं कि ये पारंपरिक कहानियां हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी पहले मौखिक और फिर लिखित रूप में आगे बढ़ती रहीं. लेखक की प्रतिभा पात्रों के चयन में हैं. कई सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही 'महानायकों के स्वर्ण युग' की सैकड़ों पारंपरिक कहानियों में से होमर ने सिर्फ़ दो पात्रों पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा. ये हैं एकीलिस और ओलिसिस (जिन्हें ओडिसीयस भी कहा जाता है). इलियड में एकीलिस का ग़ुस्सा है जिसे ट्रॉय के डिफ़ेंडिंग चैम्पियन हेक्टर के साथ द्वंद्वयुद्ध में दर्शाया गया है. ओडिसी में इस महाकाव्य के नायक की यात्रा और उसकी मर्मांतक पीड़ा की कहानी है जब उन्होंने ट्रॉय से अपने पैतृक इथाका साम्राज्य लौटने के लिए संघर्ष किया था.

लेकिन एकीलिस और ओलिसिस वास्तव में ट्रॉय में कर क्या रहे थे? क्या वास्तव में कोई ट्रोजन युद्ध हुआ था जैसा कि इन महाकाव्यों में दर्शाया गया है. ट्राय के इतिहास की मूल पूर्वधारणाओं पर आलोचकों ने बहुत पहले ही सवाल उठा दिए थे. ईसा पूर्व छठी शताब्दी में रहे सिसिलियन-यूनानी कवि स्टेसिकोरस के मुताबिक़ स्पार्टा की महारानी हेलेना, जिन्हें महाकाव्यों के मुताबिक आसक्त अपहरणकर्ता राजकुमार पेरिस ट्रॉय ले गए थे, वास्तव में ट्रोजन युद्ध के दौरान मिस्र में थीं और उनकी आत्मा की सिर्फ़ एक छवि ही ट्रॉय ले जाई गई थी. स्टेसिकोरस के संस्करण के मुताबिक यूनानियों ने अपनी रानी की तस्वीर या यूं कहां जाए कि मृगतृष्णा या भुतहा छवि के लिए युद्ध किया था.

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ईसा पूर्व पांचवीं सदी के इतिहासकार हेरोडोटस ने इस कहानी का एक अलग संस्करण पेश किया है जिसमें वो स्टेसिकोरस से सहमति जताते हुए कहते हैं कि हेलेना का अपहरण हुआ ही नहीं था. हालांकि वो मानते हैं कि हेलेना ने स्पार्टा के अपने पति मेनेलियस को छोड़ दिया था और वो अपनी मर्ज़ी से अपने ट्रॉय के प्रेमी के साथ गई थीं. ये थ्योरी शर्मनाक़ थी, लेकिन इसने कम से कम युद्ध की ऐतिहासिकता पर सवाल नहीं उठाए थे. लेकिन क्या ये ऐसे ही हुआ था?

19वीं सदी के प्रूशियाई रईस और आधुनिकतावादी व्यापारी हाइनरिक श्लाइमन को इस पर कोई शक नहीं है. उनका मानना था कि होमर सिर्फ़ महान कवि ही नहीं बल्कि एक महान इतिहासकार भी थे और इसे साबित करने के लिए उन्होंने महाकाव्य में बताई गई ऐतिसाहिक जगहों की खुदाई करवाने का फ़ैसला लिया. उन्होंने एगामेनॉन साम्राज्य की राजधानी माइसीनी और ज़ाहिर तौर पर ट्रॉय की खुदाई करवाई. दुर्भाग्यपूर्ण ये रहा कि आज के दक्षिण पश्चिमी तुर्की में स्थित हिसारलिक में उन्होंने कई गंभीर ग़लतियां कीं और पुरातात्विक ग़लती की वजह बने. जर्मनी और अमरीकी वैज्ञानिकों को इस जगह को कई बार साफ़ करना पड़ा. कई विशेषज्ञों का मानना है कि तब का ट्रॉय आज के हिसारलिक के आसपास ही रहा होगा.

इस इलाक़े के अधिकतर हिस्से की खुदाई अब की जा चुकी है और इसमें कोई शक नहीं है कि इस ऊंचे स्थान की मज़बूती से किलेबंदी की गई थी और इसके नीचे की ओर बढ़ता एक बड़ा शहर था और अपने समय में (ईसा पूर्व 13वीं से 12वीं शताब्दी के बीच) ये एक महत्वपूर्ण स्थान रहा होगा. लेकिन विशेषज्ञ ये तय नहीं कर सके हैं कि खुदाई किए गए स्थान की कौन-सी परत होमर के काल की है. कुछ लोगों का मानना है कि आज के उत्तर पश्चिमी तुर्की में ट्रॉय शहर रहा होगा, लेकिन इसके ठोस सबूत नहीं हैं इसकी वजह ये है कि यहां यूनानियों की मौजूदगी के पुरातात्विक सबूत या तो बिल्कुल नहीं हैं या बहुत कम हैं और जैसा कि होमर ने अपने महाकाव्य में बताया है यूनानियों का युद्ध दस साल चला था. ऐसे बड़े युद्ध के भी कोई सबूत या निशान नहीं मिलते हैं.

सबसे शक्की लोग जो ट्रोजन युद्ध के पूरी तरह मिथक होने की मूल सच्चाई पर ही शक करते हैं उनके लिए ये सब बहुत ही परेशान करने वाला है. सामुदायिक साहित्य की एक शैली के रूप में इन महाकाव्यों के तुलनात्मक सामाजिक और ऐतिहासिक शोध दो प्रासंगिक चीज़ों की ओर संकेत करते हैं. पहला कि इलियड जैसी कथाओं में खंडों की पूर्व कल्पना की जाती है और दूसरा कि महाकाव्यों के पवित्र क्षेत्र में हार को जीत में बदला जा सकता है और जीत को गढ़ा जा सकता है. ये एक स्थापित तथ्य है कि ईसा पूर्व 12वीं सदी के आसपास भूमध्यसागर के पास पूर्वी यूनान में इस काल में कई आपदाएं सिलसिलेवार आईं. इन आपदाओं में शहर और क़िले ध्वस्त हो गए और आबादी घट गई, बड़े पैमाने पर लोग इधर-उधर हुए और संस्कृतियां समाप्त हो गईं. ईसा पूर्व 12वीं शताब्दी में यूनानी दुनिया में कई आपदाएं आने के सबूत मिलते हैं

हम निश्चित तौर पर ये नहीं जानते हैं कि ये आपदाएं कैसे आईं या इनके पीछे कौन था. हालांकि हम इनके आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक नकारात्मक प्रभावों की पहचान कर सकते हैं. इन आपदाओं के बाद एक अंधकार काल आया जो कई इलाकों में चार सदियों तक चला और ईसा पूर्व आठवीं सदी के पुनर्जागरण काल में ही इसका अंत हुआ. ये वो दौर था जब यूनानियों ने फिर से लिखना सीखा, नई लिपि विकसित की और अपने पूर्वी पड़ोसियों के साथ व्यापार शुरू किया. यही वो समय था जब आबादी में बढ़ोतरी हुई और नागरिकता की प्राथमिक धारणाएं मज़बूत हुईं. यूनानियों ने एजियन सागर के केंद्रीय तटों से दूरस्थ पूर्वी और पश्चिमी इलाक़ों की ओर प्रवास शुरू किया. यहां हमें ट्रोजन युद्ध का मिथक गढ़ने या पैदा करने की प्रेरणा की वजह समझ आती है. ज़रूरत थी एक ऐसा प्राचीन स्वर्णिम युग गढ़ने की जिसमें यूनानी अपने महान राजा के नेतृत्व में हज़ार जहाज़ों का बेड़ा सागर में उतार सकते थे और जिन्होंने अपनी सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित स्त्री को अगवा करने वाले एक विदेशी शहर को नेस्तनाबूद कर दिया था.

इसी बीच, हाल के दौर की एक महान वैज्ञानिक उपलब्धि ये है कि हमने हित्ती साम्राज्य के दौर की चित्रलिपियों और कीलाक्षर लिपियों को पढ़ लिया है. तथाकथित ट्रोजन युद्ध तक एशिया माइनर या पश्चिमी एशिया का अधिकतर हिस्सा जिसमें आज का तुर्की भी शामिल है, हित्ती साम्राज्य का ही हिस्सा था. दोनों ही जगहों के नाम और यूनानी जैसे लगने वाले व्यक्तियों के नाम हित्ती रिकॉर्डों में दर्ज मिले हैं. इनमें विलूसा शहर का नाम जिसका उच्चारण 'इलियन' जैसा है (ये ट्रॉय के लिए इस्तेमाल होने वाला यूनानी शब्द है और इलियड इसी से बना है). हालांकि, तमाम भाषाई समानताओं के बावजूद अब तक खोजे गए और प्रकाशित किए गए हित्ती रिकॉर्डों में ऐसा कुछ नहीं मिला है जो होमर के बताए ट्रोजन युद्ध का संकेत करता हो. ठीक इसी तरह से, इन रिकॉर्डों में इस बात के सबूत हैं कि उस दौर के मध्य पूर्व में महान शक्तियों के बीच कूटनीतिक तौर पर महिलाओं का आदान-प्रदान किया जाता था. हालांकि अभी तक हेलेना नाम की कोई महिला इन रिकॉर्डों में नहीं मिली है.

ट्रोजन युद्ध मिथक या हक़ीक़त?
हमारे पास होमर काल के इन महाकाव्यों को ऐतिहासिक दस्तावेज़ मानने के दावों पर शक करने और इस विचार पर शक करने के कारण हैं कि ये महाकाव्य विश्वसनीय ऐतिहासिक पूर्ववर्ती काल का चित्रण करते हैं. उदाहरण के तौर पर ग़ुलामी की समस्या. हालांकि होमर के इन महाकाव्यों में ग़ुलामी का ज़िक्र है, लेकिन इनके लेखक (या लेखकों) को 12वीं सदी ईसा पूर्व के माइसीनियाई राजमहलों या महान अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद ग़ुलामी के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था. उन्हें लगता था कि एक महान राजा के पास लगभग 50 ग़ुलाम होते थे और ये ठीकठाक संख्या थी. लेकिन वास्तव में कांस्य युग के एजियन के पास हज़ारों की संख्यां में बंधुआ ग़ुलाम होते थे. संख्या में ये ग़लती इन महाकाव्यों की ऐतिहासिकता पर सवाल खड़ा करती है.

संक्षेप में कहा जाए तो कहा जा सकता है कि होमर की दुनिया अमर है, निश्चित रूप से क्योंकि ये महाकाव्यों के बाहर कभी थी ही नहीं, न ही वाचिक परंपरा में और न ही उसके बाद लिखे गए संस्करणों में. भगवान का शुक्र है कि ट्रोजन युद्ध में प्राचीन यूनानियों को विश्वास न होता तो हमें ट्रैजिक ड्रामा (त्रासदी दर्शाने वाले नाटक) की शैली न मिलती. ये यूनानियों की सबसे प्रेरणादायक और अतुलनीय खोज है जो आज भी हमें आनंदित करती है, चेतावनी देती है और राह दिखाती है.


 

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