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इस जगह किये जाते है श्मशान विवाह, फिर होता है उनके जीवन में ...

 
इस जगह किये जाते है श्मशान विवाह, फिर होता है उनके जीवन में ...

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। श्मशान व चिता को अलग नजरिये से देखने की भले ही लोकजीवन में परंपरा हो, लेकिन श्मशान भूमि को लेकर दरभंगा शहर में अवस्थित राज परिवार की अवधारणा अलग है। यहां गम या शोक के लिए नहीं, बल्कि जीवन व मंगल के लिए हर चिता पर चिराग जलता है। मान्यता यह भी है कि यहां शादी के बाद वैवाहित जीवन सुखी रहता है। खास बात यह है कि किसी शुभ कार्य में श्मशान या चिता का स्पर्श तक वर्जित माना जाता है, लेकिन, यहां अमूमन हर रोज मांगलिक कार्य होते हैं। 

चिताओं पर बने हैं मंदिर

देवी मंदिरों का निर्माण परिसर में चार राजा व एक रानी की चिता पर किया गया है। हर मंदिर का अपना इतिहास है। लगता है कि श्मशान के कण-कण से जीवन का उद्घोष होता है। वर्तमान में यहां से धर्म व जीवन का अलख जग रहा है। 

श्मशान बना तीर्थस्थल

महारानी अन्नपूर्णा की चिता पर अन्नपूर्णा व पृथ्वी माता का मंदिर स्थापित है। इसमें श्यामा काली मंदिर तो तीर्थस्थल बन चुका है। महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की चिता पर लक्ष्मीश्वरी तारा मंदिर, महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर रामेश्वरी श्यामा मंदिर, महाराजा रुद्र सिंह की चिता पर 17वीं सदी में निर्मित रुद्रेश्वरी काली मंदिर, व अंतिम महाराजा कामेश्वर सिंह की चिता पर कामेश्वरी काली मंदिर है। 

इस जगह किये जाते है श्मशान विवाह, फिर होता है उनके जीवन में ...

यहां नहीं है पंचांग के मायने

यहां मांगलिक कार्य के लिए इस परिसर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि न तो पंचांग की दरकार रहती है और न ही शुभ समय का इंतजार। मतलब परिसर स्थित श्यामा काली मंदिर के दरबार में सच्चे मन से जिस दिन चाहें, जीवन का नया अध्याय लिख लें। वैवाहिक डोर में बंध सकते हैं। इस परिसर में मान्यता है कि शादी के बाद वैवाहिक जीवन भी सुखी रहा है।

पंचांग के मुताबिक चैत्र मास में वैवाहिक कार्य वर्जित हैं, लेकिन गुजरे 20 दिनों में यहां 68 शादियां हो चुकी हैं। और तो और, भाद्रपद जैसे वर्जित मास में भी लोग यहां विवाह करने पहुंचते हैं। भारतीय पंचांग के मुताबिक कुछ महीने मांगलिक कार्य के लिए निषिद्ध हैं, लेकिन यहां इसका कोई मायने नहीं है।

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