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126 बीघा जमीन और 27 दुकानों केमालिक हैं ये राजस्थानी कबूतर, इनकी इस शहर में करोड़ों की प्रॉपर्टी 

 
126 बीघा जमीन और 27 दुकानों केमालिक हैं ये राजस्थानी कबूतर, इनकी इस शहर में करोड़ों की प्रॉपर्टी 

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। सैकड़ों कहानियां आपने अरबपति और उद्योगपतियों की सुनी होगी। ऐसी कहानियों के बारे में सोशल मीडिया पर अक्सर हम पढ़ते हैं। लेकिन कोई पक्षी और जानवरों के नाम पर भी आप में से बहुत कम ही लोगों ने सुना होगा कि करोड़ों की संपत्ति हो सकती है। लेकिन ये सच है। राजस्थान के नागौर जिले में स्थित राज्य के छोटे से कस्बे जसनगर में कबूतर भी करोड़पति हैं। जी हां, कबूतरों के पास करोड़ों रुपये की संपत्ति राजस्थान के जसनगर शहर में है। इन कबूतरों को ''बहु-करोड़पति'' कबूतर कहा जाता है। आइए जानें इतनी संपत्ति कहां से आई इन कबूतरों के पास और ये करोड़पति कैसे बने।

126 बीघा जमीन, 27 दुकान, 400 गौशाला के मालिक हैं कबूतर 

कबूतरों के नाम जहां 27 दुकानें हैं। वहीं ये कबूतर 126 बीघा जमीन के भी मालिक हैं। इसके अलावा इनके पास 30 लाख रुपये की नकदी भी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ये कबूतर कई दुकानों के मालिक हैं। कई किलोमीटर तक फैली जमीन और नकद रुपये भी इनके पास जमा है। ये गौशाला 10 बीघा भूमि पर भी संचालित किए जाते हैं। जसनगर के करोड़पति कबूतरों के पास 400 से अधिक गौशालाएं भी हैं। 

कैसे बने ये कबूतर करोड़पति 
40 साल पहले पूर्व सरपंच रामदीन चोटिया के निर्देशों और अपने गुरु मरुधर केसरी से प्रेरणा लेकर अप्रवासी उद्योगपति स्वर्गीय सज्जनराज जैन व प्रभुसिंह राजपुरोहित ने कबूतारण ट्रस्ट की स्थापना की थी। इन्ही लोगों ने कबूतरों के संरक्षण व नियमित दाने पानी के लिए स्बे में 27 दुकानें बनवाई और इन्हें कबूतरों के नाम कर दिया। चार दशक पहले यानी 40 साल पहले यहां एक नए उद्योगपति ने कबूतारण ट्रस्ट की स्थापना की थी।  

126 बीघा जमीन और 27 दुकानों केमालिक हैं ये राजस्थानी कबूतर, इनकी इस शहर में करोड़ों की प्रॉपर्टी 

ट्रस्ट की कमाई से करोड़पति हुए हैं कबूतर 
हम सभी को मूक पक्षियों के लिए भोजन और पानी की व्यवस्था करने के लिए प्रेरित किया है। अब इसी ट्रस्ट की कमाई से पिछ्ले 30 सालों से रोजाना तीन बोरी अनाज की व्यवस्था की जाती है। उन्होंने कहा कि उद्योगपति सज्जनराज जैन इस परियोजना में अग्रणी थे। प्रभुसिंह राजपुरोहित ने कहा कि लगभग चार दशक पहले, एक नए उद्योगपति ने यहां कबूतारण ट्रस्ट की स्थापना की थी और यह व्यवस्था हमारे पूर्वजों, साथ ही पूर्व सरपंच रामदीन चोटिया और उनके गुरु मरुधर केसरी से प्रेरणा लेकर की गई थी। 

कैसे काम करता है कबूतारण ट्रस्ट 
इन गायों के लिए चारा और पानी की व्यवस्था भी ट्रस्ट द्वारा ही की जाती है। 27 दुकानों से जो हर महीने किराया मिलता है, उसकी कीमत 80 हजार रुपये हैं। वहीं 126 बीघा जमीन अचल संपत्ति है। जो भी इस ट्रस्ट की कमाई होती है, उसे कबूतरों के रख-रखाव में लगाया जाता है और जो पैसा बचता है ,उसे गांव के बैंक में जमा करा दिया जाता है। यही पैसा बैंक में जमा होकर 30 लाख रुपये हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ट्रस्ट हर दिन 4 हजार रुपये लगाकर तीन बोरी धान की व्यवस्था कबूतरों के लिए करता है। वहीं इस ट्रस्ट द्वारा चलने वाले गोशाला में 470 गाय रहते हैं। 

कबूतरों के ट्रस्ट को दान में भी मिलते हैं रुपये 
हमें हर महीने कई लोगों के दान मिलते हैं। कबूतरों के लिए खोली गई 27 दुकानों से सलाना आय 9 लाख रुपये की होती है। कबूतारण ट्रस्ट के सचिव प्रभुसिंह राजपुरोहित के मुकाबिक जसनगर के कबूतरों के लिए लोग दान भी करते हैं। 
 

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