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बद्रीनाथ में आखिर क्यों सदीयों से बंद है शंख बजाना, जानें क्या है इसके पीछे का ये बड़ा रहस्य

 
बद्रीनाथ में आखिर क्यों सदीयों से बंद है शंख बजाना, जानें क्या है इसके पीछे का ये बड़ा रहस्य

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड की खूबसूरती को देखने के लिए स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि विदेशी श्रद्धालु भी यहां आते हैं। उत्तराखंड को छोटे चार धाम के नाम से भी जाना जाता है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण बद्रीनाथ धाम है। यह धाम भगवान विष्णु को समर्पित है। आप सभी जानते होंगे कि भगवान विष्णु को शंख की ध्वनि कितनी प्रिय है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनके मुख्य धाम बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है। हां, मठ के मंदिरों में देवताओं की पूजा की जाती है और शंख की ध्वनि से उनका आह्वान किया जाता है, लेकिन हिमालय की तलहटी में बद्रीनाथ धाम में कोई शंख नहीं है।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

बद्रीनाथ में शंख बजाने से जुड़े कई वैज्ञानिक तथ्य हैं। यदि आप सर्दियों के दौरान यहां आए हैं, तो आपने देखा होगा कि इस समय बर्फ गिरनी शुरू हो जाती है। यदि यहां शंख बजाया जाए तो उसकी ध्वनि पर्वतों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा करती है। जिससे बर्फीले तूफान या बर्फीले तूफान में दरार पड़ने की आशंका रहती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक खास फ्रीक्वेंसी की आवाजें पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसी स्थिति में पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन भी हो सकता है। शायद यही कारण है कि आदिकाल से यहां शंख नहीं बजाया जाता।

बद्रीनाथ में आखिर क्यों सदीयों से बंद है शंख बजाना, जानें क्या है इसके पीछे का ये बड़ा रहस्य

धार्मिक मान्यता

इसके अलावा शंख न बजाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं। शास्त्रों के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में बने तुलसी भवन में तपस्या कर रही थीं। तब भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस का वध किया था। हिंदू धर्म में विजय पर शंख बजाया जाता है, लेकिन विष्णुजी लक्ष्मीजी की साधना में विघ्न नहीं डालना चाहते थे, इसलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया। माना जाता है कि इसी वजह से बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है।

कहावत के अनुसार

एक अन्य कथा के अनुसार अगस्त्य मुनि केदारनाथ में राक्षसों का संहार कर रहे थे। तभी दो दैत्य अतापी और वातापी भाग खड़े हुए। कहा जाता है कि राक्षस अतापी ने अपनी जान बचाने के लिए मंदाकिनी नदी का सहारा लिया था। वातापी दैत्य ने बचने के लिए शंख का सहारा लिया तो वह शंख के भीतर ही छिप गया। ऐसा माना जाता है कि यदि उस समय शंख बजाया जाए तो राक्षस उससे भाग जाएगा, इसलिए बद्रीनाथ में कोई शंख नहीं बजाया जाता है।

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बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ा रहस्य

बद्रीनाथ मंदिर के नाम में भी एक रहस्य छुपा है, पुराणों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ध्यान में लीन थे, तब भारी हिमपात हुआ था, जिससे पूरा मंदिर ढक गया था। तब मां लक्ष्मी ने बद्री यानी बेर के पेड़ का रूप धारण किया। इस प्रकार विष्णुजी के ऊपर पड़ने वाला हिम बेर के वृक्ष पर गिरने लगा। जिससे विष्णुजी बर्फ से तो बच गए, लेकिन सालों बाद जब विष्णुजी ने देवी की यह दशा देखी तो वे भावुक हो गए। उन्होंने लक्ष्मीजी से कहा कि वे घोर तपस्या में भी उनके साथ हैं।

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