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आला नेता के खिलाफ बीएस येदियुरप्पा ने जीती पहली बड़ी लड़ाई, पर क्या कर्नाटक भाजपा की अंतर्कलह होगी खत्‍म ?

 
आला नेता के खिलाफ बीएस येदियुरप्पा ने जीती पहली बड़ी लड़ाई, पर क्या कर्नाटक भाजपा की अंतर्कलह होगी खत्‍म ?

नई दिल्ली, 19 नवंबर (आईएएनएस) । छह महीने तक चली रस्सा-कसी और राजनीतिक दांव पेंच के बीच दिल्ली में पार्टी संगठन में बैठे एक बड़े आला नेता को मात देकर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई तो जीत ली है, लेकिन अभी भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है कि क्या इस फैसले के बाद कर्नाटक भाजपा में जारी आपसी घमासान खत्म हो पाएगा ? क्या बेंगलुरु से लेकर राजधानी दिल्ली तक येदियुरप्पा विरोध की राजनीति करने वाले पार्टी के बड़े नेता अब पूरी तरह से शांत हो जाएंगे या अभी भी यह गुट येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र येदियुरप्पा की राह में भी मुश्किलें खड़ी करने का प्रयास करेगा।

दरअसल, यह तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं है कि कर्नाटक में भाजपा की जड़ें जमाने वाले और दक्षिण भारत में पहली बार कमल खिलाने वाले बीएस येदियुरप्पा ने किन परिस्थितियों में जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर लिंगायत समुदाय से ही आने वाले बसवराज बोम्मई के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया था।

हालांकि राज्य के मतदाताओं के बीच येदियुरप्पा की लोकप्रियता का सही-सही अंदाज लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी आलाकमान ने येदियुरप्पा को हमेशा पूरा मान सम्मान दिया। उन्हें पार्टी के फैसले लेने वाली सर्वोच्च और सबसे ताकतवर संस्था भाजपा संसदीय बोर्ड का सदस्य बना कर उनके राजनीतिक प्रभाव को स्वीकार भी किया, लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव आते-आते येदियुरप्पा विरोधी खेमा बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक इतना ताकतवर हो गया कि येदियुरप्पा के खिलाफ खुल कर चुनाव के दौरान सार्वजनिक बयान दिए गए।

विधानसभा चुनाव के समय पर पार्टी ने कर्नाटक में नया चेहरा उभारने का प्रयास तो किया लेकिन जनता ने उस प्रयोग को बुरी तरह से नकार दिया। भाजपा को राज्य में करारी हार का सामना कर सत्ता से बाहर होना पड़ा। कर्नाटक में करारी हार मिलने के बावजूद, येदियुरप्पा विरोधी खेमा इतना अधिक ताकतवर था कि प्रदेश में न तो प्रदेश अध्यक्ष को लेकर फैसला हो पा रहा था और न ही नेता विपक्ष को लेकर। जबकि येदियुरप्पा अपनी हर दिल्ली यात्रा में पार्टी आलाकमान से इसके लिए गुहार लगाते रहे।

सूत्रों के मुताबिक, आखिरकार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस पूरे मामले में हस्तक्षेप किया और येदियुरप्पा के प्रभाव और ताकत को सम्मान देते हुए पिछले सप्ताह शुक्रवार को बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र येदियुरप्पा को कर्नाटक भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इसके एक सप्ताह बाद शुक्रवार, 17 नवंबर को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम, बीएस येदियुरप्पा और कर्नाटक भाजप के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष विजयेंद्र येदियुरप्पा की मौजूदगी में विधायक दल की बैठक हुई जिसमें पूर्व उपमुख्यमंत्री आर अशोक को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया जो विधान सभा में विपक्ष के नेता होंगे।

इस तरह से आखिरकार छह महीने के बाद कर्नाटक भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष भी मिल गया और कर्नाटक भाजपा के विधायकों को अपना नेता भी लेकिन इसके बावजूद भी कर्नाटक में पार्टी नेताओं की या यूं कहें कि येदियुरप्पा गुट की चिंताएं बरकरार है। सवाल यह है कि येदियुरप्पा पार्टी के आला नेता के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई तो जीत गए हैं, लेकिन क्या अब उनका विरोधी खेमा शांत होकर बैठ जाएगा, क्योंकि येदियुरप्पा गुट की पहली बड़ी चुनौती आगामी लोक सभा चुनाव है, जिसमें उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके दिखाना ही होगा और वो भी उस हालात में कि लोकसभा चुनाव तक पार्टी की केंद्रीय टीम में किसी भी हालत में कोई बदलाव होने नहीं जा रहा है। यह येदियुरप्पा गुट के लिए अपने आप में बड़ी चुनौती है।

वैसे आपको बता दें कि,पार्टी ने लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजयेंद्र येदियुरप्पा को प्रदेश अध्यक्ष और वोक्कालिगा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले आर अशोक को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाकर सामाजिक संतुलन को साधने का भी पूरा प्रयास किया है।

--आईएएनएस

एसटीपी/सीबीटी

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