कर्वी के फूलों में तेज गिरावट गोवा के मौसम में गड़बड़ी का संकेत
पणजी, 19 नवंबर (आईएएनएस)। पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का कहना है कि गोवा में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण न केवल समुद्र तट का क्षरण हुआ है, बल्कि बारिश और फलों के पकने के पैटर्न के साथ फूलों के खिलने के मौसम में भी बदलाव आया है।
जाने-माने पर्यावरणविद् राजेंद्र केरकर के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन का असर पश्चिमी घाट में आसानी से देखा जा सकता है, जहां से जुआरी और मांडोवी नदियां निकलती हैं।
नदियों का प्रवाह कम हो गया है और पहले जैसा नहीं रहा। ये चीजें वनों के विनाश के कारण हो रही हैं। पिछले दो वर्षों में, पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई हुई है और चरम मौसम की स्थिति के कारण अक्सर जंगल में आग लग रही है।
राजेंद्र केरकर ने आगे कहा कि इस वर्ष म्हादेई वन्यजीव अभयारण्य के किनारे रहने वाले लोगों के लिए पीने के पानी का संकट था।
कर्वी को स्ट्रोबिलैंथ्स कैलोसस के नाम से भी जाना जाता है, यह हरी झाड़ियां हैं जो आठ साल में एक बार खिलती हैं और फूलों का रंग बैंगनी-नीले से गुलाबी तक होता है। पराग और अमृत से भरपूर, कर्वी फूल मधु मक्खियों सहित तितलियों, पक्षियों और कीड़ों की एक विस्तृत श्रृंखला को आकर्षित करते हैं।
केरकर ने कहा कि कर्वी शहद स्लॉथ भालू और अन्य जंगली जानवरों को बहुत पसंद आता है, जो अब पोषण के इस महत्वपूर्ण स्रोत से वंचित हो रहे हैं।
उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, "जलवायु परिवर्तन के कारण कर्वी के खिलने पर असर पड़ा है। सत्तारी के पश्चिमी घाट क्षेत्रों में म्हादेई वन्यजीव अभयारण्य में हाल के दिनों में कर्वी के बड़े पैमाने पर फूल नहीं खिले हैं।
जलवायु परिवर्तन ने राज्य में पश्चिमी घाट, तटीय क्षेत्रों और जैव विविधता को प्रभावित किया है।"
उन्होंने कहा, "हम तटीय क्षेत्रों में तटीय कटाव होते हुए देख सकते हैं।"
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अभिजीत प्रभुदेसाई ने आईएएनएस को बताया कि जलवायु परिवर्तन ने न केवल समुद्र तटों को बल्कि फल देने वाली फसलों और पेड़ों के फलने के पैटर्न को भी प्रभावित किया है।
प्रभुदेसाई ने कहा, ''कई किसान हमें बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने काजू उत्पादन और अन्य गतिविधियों को प्रभावित किया है। यहां तक कि मछुआरों का भी कहना है कि मछलियां प्रजनन के लिए दूसरी जगहों पर जा रही हैं क्योंकि यहां की जलवायु उपयुक्त नहीं है।''
तटीय कटाव के कारण हमारे समुद्र तट छोटे होते जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण फलों के पैटर्न और फूल खिलने के मौसम में बदलाव आया है। यहां तक कि प्रवासी पक्षियों की संख्या भी कम हो गई है।
उन्होंने पर्यावरणीय गिरावट और परिणामी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में चेतावनी देते हुए कहा, "जलवायु परिवर्तन के लिए गोवा राज्य कार्य योजना' के अनुसार गोवा में 15 प्रतिशत भूमि बाढ़ और अन्य कारणों से नष्ट हो जाएगी।"
जल संसाधन विभाग मंत्री सुभाष शिरोडकर ऑन रिकॉर्ड कह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण गोवा में बाढ़ आ रही है। पिछले दो से तीन वर्षों में जलवायु परिवर्तन और उसके परिणामस्वरूप वर्षा पैटर्न और अन्य मुद्दों में बदलाव के कारण बाढ़ अधिक बार आ रही है।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री नीलेश कैब्राल के अनुसार, नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट (एनसीएससीएम) ने अपनी 'समुद्र तट वहन क्षमता रिपोर्ट' में देखा है कि कुल मिलाकर, गोवा में लगभग 105 किमी के तटीय विस्तार के लिए, 35 प्रतिशत तट चट्टानी भूभाग है, 20 प्रतिशत स्थिर है, 27 प्रतिशत तट कटाव के अधीन है और 17 प्रतिशत तट अभिवृद्धि का अनुभव करते हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "नदी के मुहाने और बंदरगाह क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कटाव की विशेषताएं देखी जा रही हैं और गोवा के पॉकेट समुद्र तट या तो स्थिर हैं या बढ़ रहे हैं।"
नीलेश कैब्राल ने कहा कि राज्य सरकार ने भी कटाव पर नियंत्रण के लिए नरम उपाय लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
समुद्र के स्तर में वृद्धि और मानवीय हस्तक्षेप के कारण गोवा की 105 किलोमीटर लंबी तटरेखा का लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा कटाव के खतरे में है। गोवा सरकार के लिए निवारक उपाय करना और तटीय राज्य के खूबसूरत समुद्र तटों को बचाना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
यह घटना आने वाले वर्षों में इसकी पर्यटन अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। इसलिए पर्यावरणविदों ने गोवा सरकार से अब कार्रवाई करने का आग्रह किया है। समुद्र तट के किनारे पड़ने वाले निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक अपनी आवाज उठा रहे हैं और संबंधित विभागों से इस पर तेजी से कार्रवाई करने के लिए कह रहे हैं।
विपक्ष के नेता यूरी अलेमाओ ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि तटीय क्षेत्रों को कटाव से बचाने के लिए उपाय किये जाएं। अलेमाओ ने कहा, "राज्य सरकार को इसरो की रिपोर्ट का अध्ययन करना चाहिए जिसमें बताया गया है कि गोवा ने दस वर्षों में तटीय कटाव के कारण लगभग 15.2 हेक्टेयर भूमि खो दी है।"
यहां तक कि पर्यटन मंत्री रोहन खौंटे ने भी स्वीकार किया कि समुद्र तट का कटाव एक बड़ी चुनौती बन गया है। जिस तरह से यह हो रहा है, यह पर्यटन उद्योग के लिए एक खतरा है। समुद्र तट धुल रहे हैं। हम झोंपड़ियां बनाने की अनुमति देते हैं, तथापि वे अधिक समय तक (अनुमेय सीमा में) कब्जा करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि समुद्र तट बह गए हैं।"
उन्होंने कहा कि इस कटाव को रोकने के उपाय अपनाना बहुत जरूरी है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकियों को अपना सकते हैं कि हमें अपनी सतह वापस मिल जाए। पर्यावरण और अन्य विभागों की मदद से तकनीकी-वाणिज्यिक अवधारणाओं को अपनाया जा सकता है।
--आईएएनएस
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