भारत में मौजूद एक ऐसा मंदिर, जहां बढ़ रहा है आज भी मूर्ति का आकार, जानिए इसके पिछे का रहस्य
लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। चमत्कार की घटनाएं यूं तो देश के कई मंदिरों में सामने आती रहती हैं। ऐसे में वैज्ञानिक जहां कुछ घटनाओं को लेकर इसके कारणों की खोज करने में जुट जाते हैं, जबकि वैज्ञानिकों द्वारा कुछ को गलत फहमी कह कर नकार दिया जाता है। लेकिन एक ऐसे मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जहां खोजकर्ताओं ने तक तमाम तरह की खोज के बाद माना है कि हां यहां लगातार ये चमत्कार हो रहा है। एक ऐसे दक्षिण भारत के मंदिर जिसके बारे में कहा जा रहा है कि साल दर साल यहां मूर्ति का आकार बढ़ रहा है। भगवान शंकर और पार्वती का यह मंदिर है और खास बात ये है कि यहां स्थित नंदी की मूर्ति का आकार लगातार बढ़ रहा है। इसकी पुष्टि यहां तक कि खुद पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी की है। आइए जानते हैं इसके बारे में
नंदी के बढ़ते आकार के कारण खंबों तक हटाने पड़े
अपने आप में इस अनोखे मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां नंदी की प्रतिमा के बढ़ते आकार की वजह से रास्ते में पड़ रहे कुछ खंबों को तक हटाना पड़ा और यह मूर्ति आज भी बढ़ रही है। आंध्र प्रदेश के कुरनूल में श्री यंगती उमा महेश्वरा मंदिर स्थित है। ऐसे में एक-एक करके यहां नंदी के आस-पास स्थित कई खंबों को हटाना पड़ा गया है।
किसने बनवाया था मंदिर
बतााया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वैष्णव परंपराओं के अनुसार किया गया है। इसे 15वीं यह मंदिर हैदराबाद से 308 किमी और विजयवाड़ा से 359 किमी दूर स्थित है। जो कि प्राचीन काल के पल्लव, चोला, चालुक्याज और विजयनगर शासकों की परंपराओं को दर्शाता है। शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के संगम वंश के राजा हरिहर बुक्का राय के द्वारा बनवाया गया है।
इस मंदिर की स्थापना एक अन्य मान्यता के अनुसार अगस्त्य ऋषि ने की थी। वह यहां पर भगवान वेंकटेश का मंदिर बनवाना चाहते थे, लेकिन बनवाने के वक्त मूर्ति का अंगूठा टूट जाने के कारण स्थापना को बीच में ही रोक देना पड़ गया था। अगस्त्य ऋषि इससे निराश होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या में लग गए। तब भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर कहा कि यहां उनका मंदिर बनना उचित रहेगा। स्थानीय लोगों का यहां के बारे में ये भी कहना है कि जब अगस्त्य ऋषि तपस्या कर रहे थे, तो उनको कौवे आकर परेशान कर रहे थे। वे अब यहां कभी नहीं आ सकेंगे इससे नाराज ऋषि ने शाप दिया। चूंकि कौए को शनिदेव का वाहन माना जाता है, इसलिए यहां शनिदेव का वास भी नहीं होता। इस मंदिर में वहीं आज भी कौए नजर नहीं आते।
वैज्ञानिकों ने भी माना बढ़ रही है मूर्ति
बताया जाता है कि यहां आएं वैज्ञानिकों का भी कहना है कि हर 20 साल पर नंदी की मूर्ति एक इंच तक बढ़ती जा रही है। उनका मानना है कि मूर्ति जिस पत्थर से बनी है, उसकी प्रवृति विस्तार वाली है। भक्तों का मानना है कि मंदिर भगवान शंकर और माता पार्वती प्रतिमा के सामने स्थित नंदी की प्रतिमा पहले काफी छोटी थी। खुद पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी नंदी की मूर्ति के बढ़ने की पुष्टि की है।
संभवत: यह ऐसा अपनी तरह का पहला मंदिर है, जहां भगवान शिव की पूजा शिवलिंग रूप में नहीं बल्कि एक प्रतिमा के रूप में होती है। यहां शिव-पार्वती अर्द्धनारीश्वर के रूप में विराजमान हैं और इस मूर्ति को अकेले एक पत्थर को तराशकर बनाया गया है। एक खास बात और खूबसूरत प्राकृतिक नजारों से घिरे इस मंदिर की है कि यहां हमेशा पुष्कर्णिनी नामक पवित्र जलस्रोत से पानी बहता रहता है। भक्तों का मानना है कि मंदिर में प्रवेश से पहले इस पवित्र जल में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। कोई नहीं जानता कि साल 12 महीने इस पुष्कर्णिनी में पानी कहां से आता है।