देवी की बाईं आंख से निकालकर ले गए थे अंग्रेज ‘कोहिनूर’, कुछ इस तरह पहुंचाया था महारानी के ताज तक
काकतीय युग के दौरान, आकर्षक कोहिनूर हीरा का कोल्लूर खानों से खनन किया गया था। लेकिन, करीबन 1310 ईस्वी में, दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति मलिक काफूर की मदद से हीरे को कब्जे में ले लिया। बता दें, हीरा केवल यही तक नहीं रहा, एक हाथ से दूसरे हाथ होते हुए बाबर, हुमायूं, शेर शाह सूरी से लेकर शाहजहां, औरंगजेब और पटियाला के महाराजा रणजीत सिंह तक भी जा पहुंचा।
वारंगल और हनमकोंडा के बीच स्थित, भद्रकाली मंदिर देवी भद्रकाली को समर्पित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यहां जाने पर आपको मंदिर की दीवारों पर लिपियां दिखाई देंगी, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि राजा पुलकेशिन द्वितीय ने वेंगी क्षेत्र पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर भद्रकाली झील के तट पर स्थित है, जो खूबसूरत हरियाली से घिरा हुआ है। खूबसूरत झील मनमोहक पहाड़ियों के बीच मौजूद है।
देवी भद्रकाली या भद्रकाली अम्मावरु को महिलाओं के लिए शक्ति का प्रतीक माना जाता है। आसपास की प्राकृतिक खूबसूरती के साथ मंदिर की प्राचीन चालुक्य वास्तुकला आपको यकीनन बेहद पसंद आएगी। मंदिर के प्रवेश द्वार पर काकतीय वास्तुकला को भी दिखाया गया है। भद्रकाली मंदिर एक बेहद शांत जगह है, जहां का ऐतिहासिक आकर्षण प्रकृति की शांति से जब जुड़ता है, तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। सुनहरे रंग का मंदिर सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान एक अलग ही अनुभव देता है। मंदिर में देवी भद्रकाली की एकल पत्थर की मूर्ति आठ भुजाओं के साथ स्थापित है।
क्वीन विक्टोरिया के बाद ये हीरा क्वीन एलेक्सेंड्रा के पास था। उनकी मृत्यु होने के बाद ये हीरा क्वीन मैरी के ताज की शान बन गया। इसके बाद कोहीनूर हीरा को क्वीन एलिजाबेथ-2 के सिर पर सजाया गया। कोहिनूर सबसे ज्यादा महारानी एलिजाबेथ के पास ही रहा था। आपको बता दें, करीबन 70 साल से ज्यादा ये हीरा महारानी के ताज को की शोभा बढ़ा रहा था। अब यह हीरा किंग चार्ल्स-3 की पत्नी कैमिला का होगा।
मंदिर तक टीएसआरटीसी या वारंगल रेलवे स्टेशन या काजीपेट रेलवे स्टेशन से आप ऑटो-रिक्शा ले सकते हैं। वारंगल हवाई अड्डे के लिए भारत के कई से फ्लाइट ऑप्शन मिल जाएंगे। वारंगल देश के कई डेस्टिनेशन की रेल सेवाओं से भी जुड़ा हुआ है।