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दुनिया में सबसे उंचाई पर विराजमान है यह भगवान ​शिव का मंदिर, जहां शिवलिंग नहीं होती है भोलेनाथ के भुजाओं की पूजा

 
दुनिया में सबसे उंचाई पर विराजमान है यह भगवान ​शिव का मंदिर, जहां शिवलिंग नहीं होती है भोलेनाथ के भुजाओं की पूजा

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। वैसे तो देशभर में कई शिव मंदिर हैं, लेकिन सबसे ऊंचा शिव मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसे तुंगनाथ मंदिर कहा जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित इस मंदिर की ऊंचाई 3640 मीटर है। तुंगनाथ मंदिर पंचकेदार (तुंगनाथ, केदारनाथ, मध्य महेश्वर, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर) में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान शिव हाथ के रूप में विराजमान हैं। इसीलिए इस मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा की जाती है।

मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है

दुनिया में सबसे उंचाई पर विराजमान है यह भगवान ​शिव का मंदिर, जहां शिवलिंग नहीं होती है भोलेनाथ के भुजाओं की पूजा

किंवदंती है कि तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। महाभारत युद्ध में हुए नरसंहार के कारण जब भगवान शिव पांडवों से नाराज थे, तब पांडवों ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था। कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तुंगनाथ की तपस्या की थी। चंद्रशिला के दर्शन के बिना तुंगनाथ मंदिर की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मंदिर से थोड़ी दूरी पर चंद्रशिला मंदिर है। यहां रावण शिला है, जिसे (स्पीकिंग माउंटेन) के नाम से जाना जाता है। इस पर्वत के बारे में मान्यता है कि रावण को मारने के बाद श्री राम को अपराधबोध हुआ था, क्योंकि रावण एक महान विद्वान और महान शिव भक्त था। यहां रामजी ने रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए शिव की स्तुति की थी। तब भोलेनाथ ने राम को मुक्त कर दिया।

दुनिया में सबसे उंचाई पर विराजमान है यह भगवान ​शिव का मंदिर, जहां शिवलिंग नहीं होती है भोलेनाथ के भुजाओं की पूजा

बर्फ की धुंध, मखमली घास, रंग-बिरंगे फूलों और बादलों से घिरा यह इलाका आपका मन मोह लेगा। जनवरी-फरवरी में यहां बर्फ की चादर ही नजर आती है। इसीलिए इस जगह को मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। उत्तराखंड में तुंगनाथ मंदिर महादेव और पार्वती को समर्पित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की खोज 18वीं शताब्दी में संत शंकराचार्य ने की थी। मंदिर के साथ-साथ आसपास की सुंदरता भी मनमोहक है।

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